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Friday, August 04, 2006

विदाई

जो रहा सदा से था मेरा ।
वह सब कुछ अर्पण करता हूँ।
यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे मै
आज समर्पित करता हूँ !
मेरे ह्र्दय के नील गगन में
यह चन्दा सी प्यारी थी ।
माँ की ममता की प्रथम डाल
सारी दुनिया से न्यारी थी।
अभी कल ही तो इसका भइया।
पकड बाल ! चिल्लाया था ।
बहना !यह घर नही तेरा ।
कहक्रर इसे चिढाया था ।

फिर छ्लक -2 इसके आँसू ।
मेरे मन को छल जाते थे
तुम सदा रहो इस कुटिया में ।
हम झूठे सपने दे जाते थे।
इन झूठ-सच की बातों से ;
हर पल ,हर क्षण अंजाना था;
मै अब तक समझ ना पाया था।
इस पर अधिकार तुम्हारा था!
भइया से आज बहन बिछुडी ।
मां से बिछुडी माँ की ममता !
पापा! मै कब आउंगी ।
क्यूँ पूछ रही मुझसे बिटिया।
फिर से इसे बुलाने का।
अधिकार मैं अर्पण करता हूँ!
यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे मै!
आज समर्पित करता हूँ !
यह रत्न कीमती है मेरा
सोने चाँदी के प्यालोँ से;
यह रत्न कीमती है मेरा।
हीरे से जडी ;हर शालों से!


किंचित नयनोँ से इसके।
आँसू न आने देना ॥
इस मोती सी मुस्कान का ।
सम्मान मै अर्पण करता हूँ !
यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे मै !
मै आज समर्पित करता हूँ॥

3 Comments:

Anonymous Anonymous said...

tumne mujhe rula diya Mr. pawan.
ab batao mein kya karoon?

12:15 AM  
Anonymous Anonymous said...

agn apne mujhe rula dia Mr. pawan abb batao mein kya karoon?

11:46 AM  
Blogger tears n reflections said...

:) :)......Gud Gud..and yeah where can I find Supreme Sir,....

10:53 AM  

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