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Friday, August 04, 2006

एक अधूरी बात


मेरा दीवानापन देखो कि तुमको सोचते रहना
सदा से खुद को समझाना ;मुझे ही सोचते हो तुम ॥

असर इसका पता है यह सब कुछ झूठ है मगर।
ये मेरे लब सदा खामोश हैं आँखे तुझको ही देखे मगर ॥

मेरे लिये यह सोच मेरी बिछौना बनी॥
तेरे पैरों की गोद ,हर तकिये से है भली!
तेरे हाथ मेरे माथे को छूते ही करे असर ।
तेरे नयनों से गिरी दो बूँद का प्यासा है ये “भ्रमर”।

****उपरोक्त कविता "faiz " की कविता “Deewanapan” की प्रेरणा है।****

2 Comments:

Anonymous Anonymous said...

Beautiful, मगर फैज़ की कविता का लिंक तो डाल?

2:22 PM  
Anonymous Anonymous said...

rula diya naa

12:14 AM  

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