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Friday, August 04, 2006

आरजू

आरजू लेकर जब हम घर से निकलने लगे ।
तब पता चला कि हम भी आग पर चलने लगे ।

इस कदर कठिन था मेरा रास्ता सफर का!
कि ओस की बून्दो से भी पाँव झुलसने लगे ॥

मै और मेरी खामोशी ,शायद कभी ना कुछ कह पाये।
बस इसी की आड में मेरे “अपने” मुझे छ्लने लगे।

नाम से मै हूँ भ्रमर ,पर मन है पतंगा ।
वो रोशनी मेरी अपनी है;फिर क्य़ूँ न तन जलने लगे ॥

1 Comments:

Anonymous Anonymous said...

this is spirit of youht

12:15 AM  

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